Introduction To Agriculture:कृषि परिचय राष्ट्रीय अर्थ व्यवस्था में कृषि का महत्त्व

Introduction To Agriculture:कृषि परिचय राष्ट्रीय अर्थ व्यवस्था में कृषि का महत्त्व

राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्त्व जाने

भारतीय अर्थयवस्था में कृषि का राष्ट्रीय आय में एक महत्व पूर्ण योगदान मन जाता है राष्टीय आय का लगभग 35 %योगदान प्राप्त होता है कृषि क्षेत्र से ही शहरी एवं ग्रामीण जनता को खाद्यान सामग्री प्राप्त होती है तथा 36 करोड़ पशुओ को चारा की आपूर्ति की जाती है कृषि क्षेत्र से ही उद्योगो कपडा,जूटदलहन,दलहन तिलहन ,अदि कच्चा मॉल की होती प्राप्ति की जाती है।

देश की करीबन 70 % जनसँख्या प्रत्यक्ष एवं अप्रयक्ष रूप से जीवन निर्वाह के लिए कृषि पर आधारित है कृषि वस्तुवो के निर्यात से प्राप्त कुल आय से एक बहुत बड़ा लाभ प्राप्त होता है देश को निर्यात से प्राप्त कुल आय 40 %आय कृषि वस्तुओ से प्राप्त होती है 6० प्रतिशत जनसंख्या प्रत्यक्ष एवं रूप में जीवन निर्वाह के लिए कृषि क्षेत्र पर करती है। अर्थव्यवस्था के अन्य सभी क्षेत्र सम्मिलित रूप से शेष 34 प्रतिशत जनसंख्या को जीवन निर्वाह के साधन उपलब्ध करते हैं। कृषि वस्तुओं के निर्यात से, देश को निर्यात से प्राप्त कुल आय का एक बहुत बड़ा भाग प्राप्त होता है। देश को निर्यात से प्राप्त कुल आय का करीब 35 से 40 प्रतिशत भाग कृषि वस्तुओं के नियत से प्राप्त होता है। कृषि क्षेत्र से निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में चाय, तम्बाकू, काजू, कॉफी, जूट, कपास, ऊन, बादाम, खाद्य तेल, सुपारी, गोंद, किसमिस, चमड़ा, मसाले, फल एवं खली हैं। देश के आंतरिक व्यापार, रेलवे, परिवहन एवं अन्य सहायक उद्योगों के विकास में भी कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देता है। उपर्युक्त क्षेत्र का विकास भी कृषि क्षेत्र के विकास पर निर्भर करता है। देश के अनेक उद्योगों द्वारा निर्मित वस्तुएँ जैसे- उर्वरक, कीटनाशक दवा, कृषि यंत्र आदि को खपत कृषि क्षेत्र में हो होती है। अतः उपर्युक्त उद्योगों का विकास कृषि क्षेत्र के विकास पर निर्भर करता है। कृषि एवं अन्य उद्योग एक-दूसरे के पूरक उद्योग कहलाते हैं, क्योंकि एक उद्योग का विकास दूसरे उद्योग के विकास में सहायक होता है। देश की सुरक्षा के लिए जवान भी प्रायः ग्रामीण क्षेत्रों से हो जाते हैं, जो कि ज्यादातर कृषक परिवारों के ही होते हैं। कृषि का पशुपालन से विशेष सम्बन्ध है। भारत में प्रति पशु स्थायी चरागाहों की भूमि लगभग 0.06 हेक्टेयर पाई गई है और कुल कृषि भूमि का लगभग 4.4 प्रतिशत क्षेत्रफल (69 लाख हेक्टेयर) चारे की फसलों के अन्तर्गत है। प्रायः किसान अपने कुल क्षेत्रफल का 10% भाग खरीफ के चारे को उगाने में प्रयोग करता है और केवल 1% भाग रबी के चारे के लिए छोड़ता है।

कृषि का व्यवसायिकरण एवं विश्व व्यापार संगठन के परिपेक्ष में इसकी भूमिका

फसलों तथा उद्यानिकी फसलों के साथ कृषि पर आधारित अन्य उद्योग व धन्धों को अपनाकर हम कृषि को एक व्यावसायिक रूप प्रदान कर सकते हैं। इसके लिये कृषि पर आधारित उद्योगों जैसे—सुअर पालन, मुर्गीपालन आदि को अपनाकर कृषि को पूर्ण रूप से व्यवसायीकरण किया जा सकता है। अन्य उद्योगों से अपनी आप को कृषि उत्पादन मंद होने पर स्थिर कर सकते हैं। आजकल विश्व व्यापार संगठन से अगर भारत के किसानों को मुकाबला करना है तो उन उपायों को हमें अपनाना होगा जो भूमण्डलीकरण (ग्लोबलाइजेशन) के कारण विश्व व्यापार संगठन ने निर्धारित किये हैं, क्योंकि अब प्रत्येक देश ने अपने यहाँ के कृषि उत्पादों के अतिरिक्त दूसरे देशों विशेषकर भारत तथा अन्य देशों, चीन आदि के अनुसार विश्व व्यापार के द्वारा आयात करने की छूट दे दी है। अतः अब हम अपने कृषि उत्पादों को विदेशों को निर्यात कर सकते हैं तथा विदेशों के कृषि उत्पादों को अपने यहाँ आयात कर सकते हैं। इसके लिये यह जरूरी है कि हम अपने कृषि उत्पादों को इस प्रकार उत्पादित करें कि निर्यात करने के जो मानक हैं (स्टैण्डर्ड) उनमें खरा उतरें, “तभी विदेश में हम अपने कृषि उत्पादों को सफलतापूर्वक भेज सकते हैं।”

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