How To Live Life: कला सिखाती है कैसे जीवन जीना है
जीवन जीने की कला:
महाभारत ग्रंथ में गीता सर्वोच्च स्थान पर रखती है उसका दूसरा अध्याय भौतिक युद्ध का व्यवहार सिखाने के बदले स्थितप्रज्ञ के लक्षण बतलाता है स्थितप्रज्ञ का सांसारिक के साथ कोई संबंध नहीं हो सकता, यह बात मुझे तो उसके लक्षणों में ही निहित दिखाई देती है परिवार के मामूली झगड़े के औचित्य या अनौचित्य का निर्णय करने के लिए गीता जैसी पुस्तक नहीं रची जा सकती
अवतार का अर्थ है शरीरधारी विशिष्ट पुरुष जीवमात्र ईश्वर के अवतार हैं, परन्तु लौकिक भाषा में सबको अवतार नहीं कहते। जो पुरुष अपने युग में सबसे श्रेष्ठ धर्मवान पुरुष होता है, उसे भविष्य की प्रजा अवतार के रूप में पूजती है। इसमें मुझे कोई दोष नहीं प्रतीत नहीं होता है
How To Live Life: कला सिखाती है कैसे जीवन जीना है
अवतार में यह विश्वास मनुष्य की अंतिम उदात्त आध्यात्मिक अभिलाषा का सूचक है। ईश्वर-रूप हुए बिना मनुष्य को सुख नहीं मिलता, शांति का अनुभव नहीं होता। ईश्वर-रूप बनने के लिए किए जाने वाले प्रयत्न का ही नाम सच्चा और एकमात्र पुरुषार्थ है और वही आत्म-दर्शन है। यह आत्म-दर्शन जिस प्रकार समस्त धर्मग्रन्थों का विषय है, उसी प्रकार गीता का भी है। लेकिन गीताकार ने इस विषय का प्रतिपादन करने के लिए गीता की रचना नहीं की है। गीता का उद्देश्य आत्मार्थी को आत्म-दर्शन करने का एक अद्वितीय उपाय बताना है। वह अद्वितीय उपाय है कर्म के फल का त्याग।.
यह भी जरुरी है – New Oppo F23 Pro Smartphone:Oneplus ना Redmi पुरे मार्केट को क्रेश करने आ रहा है Oppo Smartphone जो हिला देंगा सारे कंपनियों के होश
मोक्ष की प्राप्ति :
धर्म के स्थान पर धर्म शोभा
धर्म का उपयोग केवल मोक्ष के लिए ही किया जा सकता है। धर्म के स्थान पर धर्म शोभा देता के अर्थ के स्थान पर अर्थ शोमा देता है मैं मानता हूँ कि गीताकार ने इस भ्रम को दूर कर दिया है उन्होंने और सांसारिक व्यवहार के बीच ऐसा कोई भेद नहीं रखा है, परन्तु धर्म को व्यवहार में उतारा है जो व्यवहार में नहीं उतारा जा सकता वह ही नहीं है यह बात गोता में कहीं गई है अतः गीता के मत के अनुसार जो कर्म आसक्ति के बिना हो ही न सके वे सब त्याज्य है-छोड़ देने लायक है। यह सुवर्ण नियम मनुष्य को अनेक धर्म संकटों से बचाता है। इस मत के अनुसार हत्या, झूठ, व्यभिचार आदि कर्म स्वभाव स ही त्यान्य हो जाते हैं। इससे मनुष्य जीवन सरल बन सकता है और सरलता से शांति का जन्म होता है।
इस विधारसरणी का अनुसरण करते हुए मुझे ऐसा लगा है कि गीताजी की शिक्षा का आचरण करने वाले मनुष्य को स्वभाव से ही सत्य और अहिंसा का पालन करना पड़ता है फलासक्ति के अभाव में न तो मनुष्य को झूठ बोलने का लालच होता है, और न हिंसा करने का लालच होता है। हिंसा या असत्य के किसी भी कार्य का हम विचार करें, तो पता चलेगा कि उसके पीछे परिणाम की इच्छा रहती ही है महापुरुषों के द्वारा बोला गया है कर्म के बिना सीधी प्राप्त नहीं होंगी |
Also read – New Hyundai Exter Car: लेटेस्ट फीचर्स, कम बजट मार्केट में भौकाल मचाने लांच हुई
गीता में आए हुए महान शब्दों के अर्थ प्रत्येक युग में बदलेंगे
गीता कोई सूत्रग्रंथ नहीं है गोता एक महान ग्रन्थ है हम उसमें जितने गहरे उतरेंगे उतने ही उसमें से नये और सुन्दर अर्थ हमें मिलेग। गोता जनसमाज के लिए है, इसलिए उसमें एक ही बात को अनेक प्रकार से कहा गया है। गीता में आए हुए महान शब्दों के अर्थ प्रत्येक युग में बदलेंगे और व्यापक बनेंगे, परन्तु गीता का मूल मंत्र कभी नहीं बदलेगा। यह मंत्र जिस रीति से जीवन में साधा जा सके उस रीति को दृष्टि में रखकर जिज्ञासु गीता के महाशब्दों का मनचाहा अर्थ कर सकता है।
How To Live Life: कला सिखाती है कैसे जीवन जीना है
परिणाम की चिंता
फल त्याग का अर्थ के परिणाम के विषय में लापरवह रहना नहीं है परिणाम का और साधना का विचार करना तथा दोनों का ज्ञान होना अति आवश्यक है इतना करने के बाद जो मनुष्य परिणाम की इच्छा किये बिना साधान में में रहता है जिससे वह फलत्यागि माना जाता है |
यह भी पड़े : Madhya Pradesh News: मध्यप्रदेश का महुआ युरोप में बिखेर रहा है अपना जलवा