डेयरी फार्म खोलने से पहले जान ले ये ये उन्नतशील नस्ले नहीं तो हो सकता है बहुत बड़ा नुकसान

भारतवर्ष में ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के पास अधिक भैंस का होना उसकी समृद्धि का प्रतीक माना गया है। इन पशुओं से मिलने वाला दूध व घी न केवल परिवार के अच्छे स्वास्थ्य का कारण बनता है तथा अतिरिक्त आय का स्रोत भी होता है।

विश्व में पाए जाने वाली भैंस की आधी से अधिक भैंसों की संख्या भारत में पायी जाती हैं, विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO, 1993) के आँकड़े अनुसार विश्व में 15.8 करोड़ भैंस हैं जिसमें से लगभग 8.5 करोड़ भैंस अकेले भारतवर्ष में पायी जाती हैं। भारत में हालांकि गायों की संख्या भैंस से 3 गुनी है पर भारत के कुल दुग्ध उत्पादन का 60 प्रतिशत हिस्सा भैंसों से प्राप्त होता है। भारतीय डेयरी उद्योग में भैंस के दूध का विशेष महत्व है। इसमें औसतन 7.86% चिकनाई पायी जाती है। भैंस पालन का प्रमुख उद्देश्य दुग्ध उत्पादन है, गाय की अपेक्षा इसे आसानी से पाली जा सकती है।

भारतीय भैंस को दक्षिण एशिया की नदी प्रजाति की भैंस मानी जाती है, जो पानी में तैरना पसंद करती है, दूसरी प्रजाति जिसे ‘दलदलीय प्रजाति’ कहते है कि तुलना में इसकी गर्मी सहन करने की क्षमता कम होती है। भारतीय भैंसें अधिकतर काले रंग की होती हैं।

भैंस की उन्नतशील नस्ले –

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1.मुर्रा भैंस –

मुर्रा नस्ल भैंस का मूल स्थान हरियाणा राज्य के गुड़गांव हिसार रोहतक एवं कर्नल माना जाता है यह भैंस की महत्वपूर्ण नस्ल है, जो दूध और घी के लिए सारे उत्तरी भारत में पाली जाती है। नस्ल सुधार के लिए मुर्रा नस्ल के साँड़ देश के विभिन्न भागों में पाले जाते हैं। भैंस का औसत दुग्ध उत्पादन 7 -8 लीटर प्रतिदिन तथा 1500-2000 लिटर प्रति ब्यात है तथा अधिकतम उत्पादन 4800 लीटर प्रति ब्याँत है। दुग्ध उत्पादन में विश्व की सर्वश्रेष्ठ नस्ल मुर्रा ही मानी जाती है ।

2.भदावरी –

इस नस्ल मुख्य स्थान आगरा जिले का भदावर छेत्र मन जाता है ये नस्ल मुख्यातह यमुना और चम्बल नदी के आस-पास के क्षेत्रों विशेषकर आगरा, ग्वालियर, भिण्ड तथा इटावा जिलों में अधिकतर पाली जाती हैं। राजकीय पशुफार्म भरारी (झाँसी) एवं ऊदी (इटावा) पर भी इस नस्ल के पशु वितरण के लिए पाले जाते हैं।यह नस्ल सबसे अधिक चिकनाई प्रतिशत वाला दूध देने के लिए प्रसिद्ध है। अधिकतम चिकनाई 13% तक होती है, लेकिन नस्ल की गिरावट के साथ-साथ इसकी चिकनाई प्रतिशत में भी गिरावट (12% से 9% तक) आयी हैं। ये नस्ल अन्य नस्लों की अपेक्षा अधिक ताप सहन कर लेती है। दुग्ध एवं घी उत्पादन क्षमता अधिक है। नर पशुओं को बोझा ढोने के लिए इस्तेमाल करते हैं। भैंसें प्रतिदिन 7 -8 लीटर दूध देती हैं। प्रति ब्याँत 1000 -1300 लीटर दूध प्राप्त किया जा सकता है

गाय की प्रमुख नस्ले –

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1.साहीवाल –

इस नस्ल के पशु हरियाणा एवं मध्यप्रदेश के अनेक सरकारी एवं प्राइवेट फार्मों में पाये जाते हैं यह भारत की सर्वोत्तम दूध देने वाली है। इस नस्ल की गाय प्रति ब्यात 4000 -4500 लीटर दूध देती है इनके दूध में 4.5% वसा होती है।

2.हरियाणा –

यह नस्ल का मूल स्थान हरियाणा के रोहतक, हिसार, करनाल तथा गुड़गाँव जिलेमने जाते है । इस नस्ल के पशु हरियाणा के अतिरिक्त सम्पूर्ण दिल्ली राज्य पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान के अलवर और भरतपुर जिलों में अधिकतर रखे जाते हैं।यह भारत की सबसे अच्छी दुकाजी नस्ल है। गायें नियमित (15 माह पश्चात्) व्याँती हैं। ये सभी जलवायु में रह सकती हैं। बैल जोताई आदि कृषि कार्यों तथा बोझा ढोने के लिए प्रसिद्ध है। औसत दुग्ध उत्पादन लगभग 7 लीटर प्रतिदिन तथा 300 दिन के व्याँत से लगभग 2000 लीटर दूध प्राप्त होता है।

3.निमाड़ी –

निमाड़ी नस्ल की गाय का मूल स्थान नर्मदा नदी की घाटी के अस पास माना जाता है यह दुधारू पशु माना जाता है जो की एक ब्यात में 300 -400 लीटर तक दूध देता है और दो बयतो में 16 महीने का अंतर होता है

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